Monday, September 24, 2012

ना जाने क्यों

ना जाने क्यों
वो पुराने दिन,
बीते हुए पलछिन,
खोई हुई यादें,
टूटे हुए वादे,
सोए हुए सपने,
कुछ पराए, कुछ अपने,
याद आते हैं...

मन की गलियों से गुज़रते कभी,
अक्सर हमे तड़पाते हैं,
एक नशा, एक मदहोशी,
एक गहरी खामोशी,
बेचैन कर देना वाला,
एक अनंत शोर,
वो छोड़ जाते हैं.
कभी हम साथ थे,
हाथो में हाथ थे,
गहरी नीली आँखों में उनकी,
हमारे दिन, हमारी रात थे...

फिर क्या हुआ जो चले गये,
छोड़ कर बीच मजधार में,
एक इनकार में,
कभी ना वापस आने के,
एक अनकहे करार में...

आस अभी तक बाकी है,
वो चले गये,
पर उनका,
एहसास अभी तक बाकी है...

दिल को बहुत समझाते हैं,
जाने वाले कभी आते नहीं,
नादिया के दो किनारे,
कभी मिल पाते नहीं,
टूटे हुए काँच के टुकड़े
कभी जुड़ पाते नहीं |

दिल फिर भी नादान है,
जाने क्या गुमान है,
संसार के इन नियमो से वो,
अग्यात है, अंजान है.
वो अब भी चाहता है,
संजोना कुछ यादें,
निभाना कुछ वादे,
देखना कुछ सपने,
जिनमे धूंड सके वो,
कुछ पराए, कुछ अपने...

जो खो गये हैं उन पलछिनों में,
बीते हुए दिनो में,
और कर गये हैं दिल को,
पारेशान और स्तब्ध,
लाचार और निशब्द,
ना जाने क्यों...

©HG


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