Wednesday, June 12, 2013

बीतें लम्हे

मैने खोया है,
ना सिर्फ़ तुम्हे,
ना सिर्फ़ तुम्हारे एहसास को,
खुद की रूह को भी,
तुम्हारे पास क़ैद थी जो,
तुम्हारे जुल्फों  की चिलमन में जो बसी थी कहीं,
तुम्हारे माथे की शिकन में उसका घर था,
तुम्हारे दुपट्टे  की सिलवट में छुपी थी वो...

मैने खोया है,
अपने होश को,
तुम्हारी झील सी निगाहों में,
जो ना कह के भी कुछ,
क्या कुछ कह जाती थी...
मैने खोया है,
खुद की परछाई को,
तुम्हारे सायो में,
अपने दिनों को तुम्हारी रातों में,
अपने चैन को तुम्हारी बातों में...

मैने खोया है,
अपनी जिंदगी को,
तुम्हे अपनी जिंदगी बनाकर,
तुम्हे अपनी सांसो में बसाकर...

इतना सब खोकर,
फिर भी मैने तुम्हे खोया,
इस जहाँ में कहीं,
अंजान शहरों  के,
अंजान रिवाज़ो में कहीं,
जहाँ अभी भी बसती है,
तुम्हारी रूह,
मेरी धड़कन बनकर,
और बहती है लहू की तरह,
मेरे सीने में,
इक अंजानी कशिश जैसे...