बदहवास से भागते,
किसी शहर,
के किसी बाज़ार,
की कोई तंग गली,
की किसी छोटी सी दुकान में,
जो कभी दिख जाऊं मैं,
तो पुकार लेना,
मेरा नाम।
मैं पहचान लूँगा,
तुम्हें,
तुम्हारी आवाज़ से,
तुम्हारे अंदाज़ से,
तुम्हारी कशिश के,
एहसास से,
तुम्हारे कदमो,
की आहट से,
या फिर तुम्हारी,
चूड़ियों की,
छनछनाहट से।
जो ना पुकार सको,
मेरा नाम,
तो छोड़ जाना,
अपना रुमाल,
उसी दुकान पे,
मैं रख लूँगा उसे,
तुम्हारी निशानी बनाकर।
इतना भी ना कर सको तो,
तो बस याद कर लेना मेरा नाम,
एक बार अपने मन में,
मैं अपनी हिचकी से ही तुम्हारा,
एहसास कर लूँगा,
छोड़ जाना अपनी खुश्बू,
उन हवाओं में कहीं,
मैं उसी से तुम्हारा,
दीदार कर लूँगा।
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