ताकता हूँ जब मैं,
गहरे नीले आसमां में कभी,
खोए हुए कुछ एहसास,
मुझे नज़र आते हैं।
उड़ते आज़ाद पंछियों की,
मदमस्त चाल को देख,
अपने क़ैद होने का ख़याल,
फिर घेर लेता है।
दूर आकाश के परे ,
ना जाने कितने जहान होंगे,
हम कुछ भी तो नहीं,
इस ब्रहमांड के चक्रव्यहू में,
हमारे जीवन महत्वहीन,
कोई कल्पना होंगे।
किसी कलाकार की ,
जो खेलता रहता है शतरंज,
हम प्यादों से,
और हम खुद को राजा मान,
गुमान करते हैं।
बस एक एहसास भर ही होगा,
यह जीवन किसी जहान में,
अभी शुरू और अभी खत्म ,
हो जाता होगा।
खत्म ही हो जाना है,
यह खेल एक दिन ,
तो क्यों हम इस लघुता का,
बखान करते हैं।
©HG
©HG
nice one
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